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आज के समाज पर बेहतरीन हिंदी कविता | Kohram Kyon Hai

आज के समाज पर बेहतरीन हिंदी कविता:

आज के समाज की बात करें तो यह अपार बदलाव की दुनिया है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और सामाजिक माध्यमों के विकास ने हमारे जीवन को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है। आज की पीढ़ी तकनीकी दुनिया में पल-बढ़ रही है, संचार के जरिए समस्त जगत् तक जुड़ी हुई है। यहां नए व्यवसाय मॉडल, नौकरी के प्रकार और सामाजिक संघर्ष देखे जा सकते हैं। बदलते मानसिकता, रोजगार की अनिश्चितता और तकनीकी अभाव सभी  प्रभावित हो रहे हैं। समय के साथ समाज और मानवीयता को नए संकटों और अवसरों का सामना करना पड़ रहा है, और हमें इन चुनौतियों को संभालने के लिए सामर्थ्यवान और संवेदनशील बनना पड़ेगा।

आज के समाज पर बेहतरीन हिंदी कविता के माध्यम से वर्तमान समाज की विसंगतियों को उजागर करते हुए, समाज की उज्ज्वल छवि को निखारने के लिए नागरिकों को जागरूक करने का यह छोटा सा कदम है।
आज के समाज का आईना दिखाती कविता



कोहराम क्यों है

आज के समाज पर बेहतरीन हिंदी कविता | Kohram Kyon Hai Shayari Metro

Aaj ke samaj per behtarin Hindi kavita



शहर भर में मचा कोहराम क्यों है,
हर किसी ने ओढ़ा नकाब क्यों हैं।

जब किसी को नहीं रहा नशा किसी का,
फिर महफिल में रखी शराब क्यों है।

यदि मौसम नहीं रह गया है गुनाहों का,
तो हर कोई खुद को समझता नवाब क्यों है।

गर प्यार से ही समझ जाते सब प्यार की बातें,
बार-बार जुबां पर आता फिर इंकलाब क्यों है।

पैगाम देते हैं खूबसूरत मोहब्बत का जो,
वो बंद किताबों में रखा गुलाब क्यों है।

जब रखने ही है फासले बेपनाह दिलों में,
फिर महफिलों में रौनक बेहिसाब क्यों है।

रोशन हो जाएगा कोना-कोना अनु तेरे शहर का गर,
महसूस करोगे जब ये आजादी-ए- जश्न इतना लाजवाब क्यों है
***
                                     .…..  ‘अनु-प्रिया’                                           ्
Naye Yug ki Nayi Kavita: 
Kohram kyon hai



Shahar bhar me macha kohram kyon hai,
Har kisi ne odha nakaab kyon hain.

Jab kisi ko nahin raha nasha kisi ka,
Phir mahfil me rakhi sharab kyon hai.


Yadi mausam nahin rah gaya hai gunahon ka,
To har koi khud ko samajhata nawab kyon hai.


Gar pyar se hi samajh jate sab pyar ki baten,
Baar-baar jubaan par aata phir inklaab kyon hai.
Paigaam dete hain khubasurat mohabbat ka jo,
Vo band kitabon me rakha gulaab kyon hai.
Jab rakhane hii hai fhasle bepanaah dilon me
Phir mahaphilon me raunak behisaab kyon hai.
Roshan ho jayega kona-kona Anu tere shahar ka gar,
Mahsuus karoge jab ye azadi-e-jashn itna lajawab kyon hai


***
                                    …… ‘anu-priya’
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