Heart Touching Poem in Hindi के इस संग्रह में हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं बेस्ट हिंदी कविताएं, जो न केवल भावनाओं को व्यक्त करती हैं, बल्कि पाठकों के दिल में एक विशेष स्थान बनाती हैं। इन कविताओं में प्यार, दर्द, और ज़िंदगी के अनकहे पहलुओं को बखूबी प्रस्तुत किया गया है। आइए, इन दिल को छू लेने वाली कविताओं का आनंद लें । इन कविताओं में प्यार, दर्द, और ज़िंदगी के अनकहे पहलुओं को बखूबी प्रस्तुत किया गया है। कविताएं ,कहीं न कहीं विचारों,भावनाओं , संवादों को व्यक्त करने का माध्यम होती हैं और इन सभी के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती हैं। कविताएँ समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं और सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा देती हैं। वे साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो हमारे भारतीय समाज की अमूल्य धरोहर को बनाए रखने में मदद करती हैं। तो चलिए पढते हैं -हमारी लेखिका ‘अनु-प्रिया’ द्वारा लिखित दिल को छू लेने वाली Best 10 Poems in Hindi | बेस्ट हिंदी कविताएं
Table of Contents
Poem on Politics in Hindi | राजनीति पर हिंदी कविता
प्रकृति पर खूबसूरत हिंदी कविताचुनाव पर कविता हिंदी मेंअखबार पर हिंदी कविता नए वर्ष पर हिंदी कविताबुढ़ापे पर हिंदी कविताबसंत ऋतु पर छोटी सी कवितादिसंबर पर कवितानए जमाने की कविताआज के जमाने पर कविता
Best Kavita in Hindi
Best Political Poem in hindi(Rajniti per Hindi kavita)
राजनीतिक कुर्सी सत्ता का प्रतीक है, जो नेताओं को विशेष अधिकार प्रदान करती है। इसके चलते, कई बार नेता स्वार्थ और शक्ति के मोह में फंस जाते हैं। । अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए और कुर्सी के लिए इसी लालच को इस कविता में दर्शाया गया है–
राजनीति की कुर्सी
यह कुर्सी भी कितनी दलाल बन गई,
जाते जाते कितना गोलमाल कर गई।
अब तक सजती थी जिनकी चौपाले यहां,
उनके खिलाफ ही हड़ताल कर गई।
इलाका थर्राता था कभी दहशत से जिनके,
उन शेरों को अब यह घड़ियाल कर गई।
लिबास ओढ़े रहती है शराफत का हरदम,
न जाने कितनों के लिए मिसाल बन गई।
जादू भरा है नस-नस में इसकी,
कितनों के मन में यह उबाल कर गई।
उतरे जो इससे वह भूत हो गए,
बैठे जो उसका भविष्य काल हो गई।
राजनीति की कुर्सी का भी जवाब नहीं साहिब,
किसी को भौकाल,किसी को कंगाल कर गई।।
-‘अनु-प्रिया’***
Short Poem on Nature in Hindi
प्रकृति की गोद में असीम सुख-शांति और सौंदर्य छुपा है। यह हमें न केवल जीवन देती है बल्कि जीने की कला भी सखाती है । प्राकृतिक दृश्यों, जैसे कि हरे-भरे पेड़, फल-फूल, बहती नदियां, और पहाड़ों की ऊँचाइयाँ, हमें रोजमर्रा की चिंताओं से मुक्त कर एक नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। तो आइए, इस कविता के माध्यम से प्रकृति की सुंदरता का गुणगान किया जाए।
प्रकृति पर खूबसूरत हिंदी कविता
प्रकृति की छटा हर तरफ छाई हुई है,
पहाड़ों सी ऊंचाई तो
सागर सी गहराई समाई हुई है।।
खेत-खलिहानों का लहलहाना
चुलबुल नादान पंछियों का फुदक-फुदक गाना
डाली-डाली फूलों की भी इठलाई हुई है।
प्रकृति की छटा हर तरफ छाई हुई है।।
मदमस्त हवाओं की सरसराहट
प्यास बुझाती टेढ़ी-मेढ़ी नदियों की कल-कलाहट
जिनकी महिमा वेदो में भी गाई हुई है।
प्रकृति की छटा हर तरफ छाई हुई है।।अंधियारी रातों में तारों का टिमटिमाना
आकाश का नीले-काले-सफेद बादलों से घिर जाना
रात मानो कितने ही रंगों से नहाई हुई है।
प्रकृति की छटा हर तरफ छाई हुई है।।
……..’अनु-प्रिया’
Short poem on election in Hindi चुनाव पर कविता हिंदी में
वर्तमान में, भारतीय राजनीति में कई मुद्दे हैं जिन पर गहन चर्चा और विवाद होते हैं। इनमें जातिवाद, धर्म, आर्थिक विकास, गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, और महिला सशक्तिकरण शामिल हैं। ये मुद्दे न केवल चुनावों के दौरान, बल्कि आम जनजीवन में भी लोगों के विचारों और बहसों को प्रभावित करते हैं। कुछ इसी मानसिकता का फायदा उठाकर आजकल नेता राजनैतिक दांव-पेंच खेलने लगे हैं, यह कविता बिल्कुल इसी मर्म को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है।–
कहीं चुनाव तो नहीं
अंदाज़ जुदा सा है कोई दांव तो नहीं
हर कोई खुदा सा है ,कहीं चुनाव तो नहीं।
रैलियों पर रैली, बैनर ,चुनावी पर्चियां
वोटों की मंडी सजाने का कोई दुराव तो नहीं।
कसमे-वादों के डंके बजने लगे हैं शहर भर में
प्रलोभनकारियों का कुर्सियों से कहीं लगाव तो नहीं।
धक्का-मुक्की के बीच ताबड़तोड़ बजती तालियां
चुनावी हथकंडों का गलत इरादों से कोई जुड़ाव तो नहीं।
चिकनी-चुपड़ी बातें मलकर वोटों का होता मोल- भाव
सियासी षड्यंत्रों का कोई जलता अलाव तो नहीं।
झोले,थैले,बक्से तक आतुर हैं किसी जुगाड़ में
तोहफे में इनको मिल रहा कोई घाव तो नहीं।
“होगा बदलाव अबकी बार, जब चुनेंगे हमारी सरकार
“शाही पुलाव परोसने वाले कहीं, ये ऊदबिलाव तो नही।
सियासी खेलों के मंझे खिलाड़ी छुपाते हैं, हर गुनाह अपने
इनका यूं चुनावी रंग में रंगना, कहीं कोई बचाव तो नहीं।
…..’अनु-प्रिया’
Short Poem on Newspaper in Hindi :
समाचार पत्र अर्थात् अखबार समाज का एक महत्वपूर्ण अंग हैं, जो दैनिक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं और विविध जानकारियों को लोगों तक पहुंचाते हैं। यह हमें राजनीति, अर्थशास्त्र, खेल, मनोरंजन, और विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे नए-नए विकासों से अवगत कराते हैं। समाचार पत्र न केवल ज्ञान का एक स्रोत होते हैं, बल्कि वे समाज में जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देने का भी एक माध्यम हैं। अखबार की इसी विशेषता को इस कविता में बड़े ही आकर्षक ढंग से उतारा गया है।
अखबार पर हिंदी कविता
सुबह होते ही खबरों से प्यार शुरू हो जाता है
हर घर में चाय के साथ अखबार शुरू हो जाता है।
राजनीति की चर्चाओं से गरमा- गरम यह रहते हैंबेकारी- गरीबी जैसे मुद्दों का भंडार शुरू हो जाता है।
अर्थव्यवस्था वाला कॉलम घटता-बढ़ता रहता हैरुपया-डॉलर की घटा-बढ़ी का कारोबार शुरू हो जाता है।
दुर्घटना ,मर्डर, रेप खबर सुन मन विचलित हो जाता हैकुछ पर तूल पकड़ नेताओं में हाहाकार शुरू हो जाता है।
वैवाहिक विज्ञापन तो जैसे भूले -भटके लगते हैंपर वर- वधू के संगम का प्रवेश- द्वार शुरू हो जाता है।
मनोरंजन वाले पन्ने जैसे पांव पसारे बैठे हैंहॉलीवुड- बॉलीवुड का मानो व्यापार शुरू हो जाता है।
इश्तिहार भी जगह ढूंढता और मचलता छपने कोहफ्तों से बाट निहार रहा, नित दरकार शुरू हो जाता है।
खेल-जगत का पन्ना भी अपना परचम लहराता हैजीते तो उपहार नहीं तो उपचार शुरू हो जाता है।
लोकतंत्र की मर्यादा इससे ही पहचानी जाती हैदेश की ताकत का अंदाजा सीमा पार शुरू हो जाता है।
…….’अनु-प्रिया’
Short Poem on Happy New year नए वर्ष पर हिंदी कविता
नया साल नयी उम्मीदें, नया जोश और नया संघर्ष लेकर आता है। इसलिए नए साल के मौके पर हमें जीवन के हर क्षण को खुशी पूर्वक बिताने का संकल्प करना चाहिए और सभी परिवारजनों को एकदूसरे के प्रति समर्पित और सहानुभूति भाव से प्रतिबद्ध रहने का संकल्प करना चाहिए। आइए हम सभी इस कविता के माध्यम से संकल्प लेते हैं:–
बिगुल बजाकर जीवन- रण में
अपना कदम बढ़ाते रहना।
हे मानुष! तुम कर्मपुरुष बन
संघर्षों से टकराते रहना ।
खर्च कर पसीने की बूंदे
शोहरत- नाम कमाते रहना।
प्रेम की परिभाषा को गढ़कर
रिश्ते मधुर बनाते रहना।
अंतरतम तक हो उत्साहित
अंतर भेद मिटाते रहना।
दृढ़ निश्चय की लगा चिंगारी
मेहनत को सुलगाते रहना।
कर लोगे हर सपने को सच
सोच नई अपनाते रहना।
जीवन रूपी महायज्ञ को
कोशिश कर सफल बनाते रहना।
सूरज जैसा तेजस्वी बन
अपना परचम लहराते रहना।
अविरल बहती नदियों से तुम
रोड़े राह हटाते रहना।
कैसे चढ़ना शिखर बताते
हिम्मत आप चढ़ाते रहना।
श्रमजीवी चींटी जैसे तुम
प्रतिपल कदम बढ़ाते रहना।
क्रीड़ारत विकल विहंग से
आशा के पंख फैलाते रहना।
उमड़-उमड़ बरसा बहार
साप्रेम-सुधा बरसाते रहना।
रतन लुटाती वसुंधरा सा
सबका मान बढ़ाते रहना।
फूलों की सुगंध को भर
जीवन बगिया महकाते रहना।
नए वर्ष की नई बेला पर
नई चेतना, नई उमंग संग
सपनों की पाखी में भर तुम,
हौसलों को उफनाते रहना।।
…… ‘अनु-प्रिया’
Short Poem on Old Age in Hindi बुढ़ापे पर हिंदी कविता
बुढ़ापे का आगमन एक प्राकृतिक अवस्था है। हर किसी को इस अवस्था से गुजरना जरूर पड़ता है । इसमें व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना तो करना ही होता है, लेकिन साथ ही यह समय ऐसा होता है कि व्यक्ति के पास अनुभवों की संजीवनी शक्ति या कह लीजिए कि समझ बहुत अधिक आ जाती है। इसलिए शारीरिक सुंदरता का मोह त्याग कर बुढ़ापे को बेझिझक स्वीकार करें और इसका अपना आनंद लें।
कुछ अचंभित ठगा- ठगा सा
अंतकरण मेरे अंतरद्वंद मचा सा
दिशाविहीन उसकी मुखाकृति को
अनिमेष देखता रहा मैं
वो शख्स खड़ा दिखा दर्पण में
थोड़ा मिला- अनमिला सा
जिज्ञासाओं का चल पड़ा मानों
साक्षात् काफिला सा
अंगुलियों के पोरों से दर्पण पर
पसरी धूल को उकेरता रहा मैं
कुछ अचंभित ठगा- ठगा सा
अनिमेष देखता रहा मैं।।
कंपकंपाती काया, रेंगती झुर्रियां,
धुंधलाता ऐनकबालों पर सफेदी
झुके से कंधे, फीकी होती रौनक
काम के बोझ तले दबती
उसकी अतृप्त अभिलाषाओं को
महसूस करता रहा मैं।
कुछ अचंभित, ठगा -ठगा सा
अनिमेष देखता रहा मैं।।
तजुर्बा बोला मेरा उससे,
न कर मलाल,
यूं मत रह जग से
अलग-थलग- विलग हो
अनंत दीप बन प्रकाशमान कर सबको,
बस तू जगमग हो
उसके ख्वाबों की खनक की कसक को
थोड़ा सा टीसता रहा मैं।
कुछ अचंभित, ठगा-ठगा सा
अनिमेष देखता रहा मैं।।
वह मुस्कुराया और बोला कि
बुढ़ापे की सनक हो चली तुझ पर भारी है
मैं तेरा प्रतिबिंब हूं पगले
यह तेरी लाचारी लाइलाज बीमारी है
जवानी में बहकते देखा था लोगों को,
बुढ़ापे में खुद को बहकते देखता रहा मैं।
कुछ अचंभित, ठगा-ठगा सा
अनिमेष देखता रहा मैं।।
…….. ‘अनु-प्रिया’
Short Poem on Basant Panchami बसंत ऋतु पर छोटी सी कविता
बसंत ऋतु में प्रकृति नवीनतम रूप धारण करती है । फरवरी मार्च के महीने के इस मौसम में नए-नए पत्ते और रंग- बिरंगे फूल खिलते हैं। बसंत ऋतु के आने पर होली, बसंत पंचमी,जैसे महत्वपूर्ण त्योहार भी मनाए जाते हैं जो लोगों को आनंदित और उत्साही बनाते हैं। इस ऋतु में फूलों की महक, पक्षियों की चहक, धूप की गर्मी और हवा की ठंडक सभी के मन को मोह लेती है। ताजगी और खुशमिजाजी के इसी भाव को कविता में उकेरा गया है।
उजली-उजली सी मीठी-मीठी सी
चहुंओर बिखरकरचट्टानों,मैदानों,खलिहानों में छितरकर
पेड़ों के झुरमुट से झांकती हुई
खिड़की के रास्ते मुझे सहलाती हुई
थोड़ा गुनगुन कर जाती है
मानो मुझसे कुछ कह जाती है
न धरती अंबर तपते हैं
न स्वेद तनों से झरते हैं
मैं जेठ दुपहरी घाम नहीं
अंगारों सी मेरी शाम नहीं
पतझड़ के सूखे पात नहीं
कंपन भी अब दिन-रात नहीं
न पंख फैलाती कोहरा हूं
मैं तो बस कवियों का मोहरा हूं
मैं धुप-धुप करती ढिबरी सी
जाड़े की माखन मिश्री सी
चांदी सी बस बिछ जाती हूं
कहीं फैल कहीं खिंच जाती हूं
मैं सखी नए-नए पात़ों की
कोमली सी टहनी शाखों की
कुसुमों की मोहक सुगंध में हूं
मंजूरियों की सोंधी गंध में हू
कोयल की कूक में हूं रमती
भंवरे की हूक से हूं खिलती
पीली सरसों पर परस रही
हल्दिया रंग से सरस रही
फड़फड़ा उठे जब मन आंगन
झूमने लगे जब सब तन-मन
जब आंचल पीत लहर जाए
मौसम में प्रीत सहर जाए
अंगड़ाई ले जाग उठे यौवन
प्रेम प्रसून खिल उठे अंतर्मन
मैं मंद बयार का हाथ पकड़
प्रियतमा जैसे संग सुघड़
बस लहराई सी जाती हूं
सबमें समायी सी जाती हूं
मनभावन करने वाली हूं
सूनापन हरने वाली हूं
क्यों खोए-खोए से लगते हो
बिछुड़न में रोए से लगते हो
माना पगडंडी टेढ़ी हैं
कहीं फिसलन है कहीं रेड़ी हैं
क्यों धुला-धुला सा मुखड़ा है
जाने कितनों का दुखड़ा है
अंदर की धूप में नहीं सुलग
मत रह विलग, कुछ कर अलग
लंबी लकीर बन चलता जा
तू शूरवीर है बढ़ता जा
गर धीरज तेरा न डोलेगा
गम का सूरज भी डूबेगा
पिघला दूंगी अवसादों को
पीड़ा से भरे गुबारों को
बस मुझसे हाथ मिला ले तू
प्रकृति को गले लगा ले तू
खिला दूंगी तेरा श्यामल रंग-रूप
क्योंकि मैं हूं बसंत की धूप
मैं हूं बसंत की धूप
….’अनु-प्रिया’
***(8)Hindi poem on December
दिसंबर का महीना साल का अंतिम महीना होता है और यह बेहद ठंड से भरा होता है। रजाईयां ,कंबल, स्वेटर, ग्लव्स सब कम पड़ जाते हैं । ठंड के इस महीने में कई महत्वपूर्ण त्योहार भी मनाए जाते हैं, जैसे कि क्रिसमस, नया साल । इस महीने में कहीं-कहीं तो बर्फ भी गिरने लगती है, जिससे सर्दी का मजा बढ़ जाता है। दिसंबर की खूबसूरती को इस कविता में अच्छे से पिरोया गया है।
दिसंबर पर कविता
आया दिसंबर कुछ आने-जाने को है
वक्त कुछ नया आजमाने को है।
कोहरे का घूंघट ओढ़ अब्र ने
पसेर दी है ओस पूरे बरस की
धूप बस रत्ती भर ही गुनगुनाने को है।
आया दिसंबर….
कलरव करते मदमस्त आजाद पंछियों ने
घोल दी है मिश्री जैसे चमन भर में
पैगाम- ए- अमन शहर भर में बिखर जाने को है।
आया दिसंबर…….
ठिठुरन भरी सर्द रातों में कड़क चाय ने
चुस्कियों से कर दी है सांसे गर्म
दिल दुबककर रजाइयों में बेखबर हो जाने को है।
आया दिसंबर……
सुर्ख लाल होते हुए पलाश के फूलों ने
सजा दिए हैं सर्द रूखे से चेहरे भी
धकेल गमों को पीछे समय अब निखर जाने को है।
आया दिसंबर……..
दीवारों की खूंटी पर टंगे कैलेंडर ने
हलचल सी मचा दी है किसी के स्वागत पर
दिन, साल, महीना सब कुछ बदल जाने को है।
आया दिसंबर………
मन की अभिलाषा में छिपे छंद नए
आतुर से हैं कहीं रच जाने,छप जाने को
क्या तकदीर मेरी भी कल चमचमाने को है।
आया दिसंबर……….
…….. ‘अनु-प्रिया’
***
(9)नए जमाने की नई कविता:—
डिजिटल जमाना जहां तकनीकी उन्नति और संचार के लिए एक आधुनिक युग है, वहीं इसकी कई बुराइयां भी हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि लोगों के बीच सामाजिक संवाद, आपसी मेल-जोल की कमी होती जा रही है। लोग अक्सर अपने तकनीकी उपकरणों में इतने डूबे रहते हैं कि वे अपने पास के लोगों से कई कई दिनों तक नहीं मिलते।। व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ, इसने साइबर बुलिंग, डाटा चोरी, और ऑनलाइन धोखाधड़ी जैसी समस्याओं को भी बढ़ावा दिया है। डिजिटल जमाने की इन्हीं सभी कमियों को कविता के माध्यम से उजागर किया गया है।
नए जमाने की कविता:–डिजिटल जमाना
आजकल जमाना बडा़ digital है,
Simple नहीं, बड़ा critical है।
बच्चों को नहीं भाती अब कहानियां परियों की,
उनके लिए Doraemon ,Chhota Bheem बड़े Actual हैं।
घर-घर पूजे जाते थे कभी राणा- शिवाजी
पर अब तो वे बस किताबों में ही रह गए role model हैं।
छतों की तरह जुड़ी रहती थी दिलों की दीवारें कभी,
अब तो हर कोई single और special है।
तोता- मैना तो बस भीड़ में ही खोकर रह गए,
रह गए तो सिर्फ गिरगिट और eagle हैं।
झूठ -फरेब की हर तरफ खुली है दुकानें यहां,
शायद ही कोई कोना यहां loyal है।
अब लोग अपना 100% प्रतिशत नहीं देते,
बस छोटी-छोटी जंग ही उनके लिए final हैं।
…… ‘अनु-प्रिया’
***
Best Poem in Hindi :-
हमारे आसपास हर तरफ ही झूठ और फरेब का बोलबाला है। चाहे व्यक्तिगत संबंध हों या पेशेवर माहौल, हर जगह इसकी छाया देखी जा सकती है। बनावटी लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को धोखा देने से नहीं हिचकते। कुछ इसी तरह के माहौल को इस कविता में दर्शाया गया है।
आज के जमाने पर कविता
कोहराम क्यों है?
शहर भर में मचा कोहराम क्यों है,हर किसी ने ओढ़ा नकाब क्यों हैं।
जब किसी को नहीं रहा नशा किसी का,फिर महफिल में रखी शराब क्यों है।
यदि मौसम नहीं रह गया है गुनाहों का,तो हर कोई खुद को समझता नवाब क्यों है।
गर प्यार से ही समझ जाते सब प्यार की बातें,बार-बार जुबां पर आता फिर इंकलाब क्यों है।
पैगाम देते हैं खूबसूरत मोहब्बत का जो,वो बंद किताबों में रखा गुलाब क्यों है।
जब रखने ही है फासले बेपनाह दिलों में,फिर महफिलों में रौनक बेहिसाब क्यों है।
रोशन हो जाएगा कोना-कोना अनु तेरे शहर का गर,महसूस करोगे जब ये आजादी-ए- जश्न इतना लाजवाब क्यों है।
…….’अनु-प्रिया’
***
तो दोस्तों! उम्मीद करते हैं कि आपको यह ‘अनु-प्रिया’ द्वारा लिखित दिल को छू लेने वाली Best 10 Poems in Hindi/ बेस्ट हिंदी कविताएं अवश्य ही पसंद आयी होगी। इसमें हमने एक साथ उनकी 10 कविताओं का संग्रह बनाया है। आप हमारी यह पोस्ट अपने मित्रों एवं रिश्तेदारों के साथ Facebook , Instagram, Twitter, WhatsApp इत्यादि पर साझा कर सकते है, और हमें कमेंट में बता सकते है कि आपको हमारा यह कविताओं का संग्रह कैसा लगा।