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शहर पर कविता | गांव और शहर में अंतर पर कविता-मेरे शहर में

बचपन इतना मासूम और मिठास भरा होता है कि हममें से शायद हर कोई फिर से एक बार इसे जीना चाहता है फिर वह बचपन गांव में बीता हो तो क्या कहने। मिट्टी, पेड़ों की पत्तियों से छोटे-छोटे घर बनाना किसकीh यादों में भला शामिल नहीं होगा। मेला घूमना, दिन भर मौज-मस्ती करना, फल-फूल तोड़ना, झूला झूलना, बेफिक्र होकर सोना, बारिश में भीगना जैसी मस्तियां आज भी सबके दिलों-दिमाग पर छाई हुई होंगी। आज के भौतिकवादी युग में लोग महानगरों की चकाचौंध और सुख सुविधाओं से आकर्षित हो शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं । यहां की भाग-दौड़ भरी जिंदगी ने समाज से अपनापन, भावनात्मक संबंध, रिश्ते-नातों को जैसे लगभग समाप्त ही कर दिया है। आज का बचपन समय से पहले ही बड़ा होता जा रहा है। शहर के नीरस भरे वातावरण में रहकर कभी-कभी मन विचलित हो उठता है और अनुप्रिया द्वारा रचित शहर गांव पर तुलनात्मक खूबसूरत हिंदी कविता-Mere Shahar Me के माध्यम से कहता है कि……


शहर पर कविता | गांव और शहर में अंतर पर कविता

मेरे शहर में




इतना सब सीलबंद है मेरे शहर में
कि बचपन तक नजरबंद है मेरे शहर में।

अम्मा के चूल्हे से अब उठता नहीं धुंआ
अंगीठी तक नापसंद है मेरे शहर में।

झरने,तालाब,नदियां उफनती है गांव में
बिकता पानी बोतलबंद है मेरे शहर में।

बाटी-चोखा,दाल-चूरमा सब बीती बातें
पिज्जा,बर्गर ही दिल पसंद है मेरे शहर में।

भूल पीपल,नीम तले माटी खेला बचपन
टीवी मोबाइल में बसता आनंद है मेरे शहर में।

काला कागा,मोर,पपीहा,जुगनू सब छूटे
चिड़िया तक नहीं स्वच्छंद है मेरे शहर में।

गुल्लक,चकिया,गुड्डा-गुड़िया मेला से लाना
चरखी डोर पतंग तक बंद है मेरे शहर में।

तिल- लाई लड्डू की भीनी खुशबू के आगे
भाव चढ़ता कलाकंद है मेरे शहर में।

इमली,बेल,गन्ने,रसीले आम के चुस्की
मिलता भी नहीं गुलकंद है मेरे शहर में।

दमघोंटू आबोहवा में कैसे हो गुजर बसर
पर हर कोई ख्वाहिशमंद है मेरे शहर में।

चमकते-दमकते लोग,बनावटी बातें
बस मतलब के ही संबंध है मेरे शहर में।

रेस्टोरेंट्स,पार्क,क्लब में मौज ढूंढते लोग
सच्ची खुशियों पर भी पाबंद है, अनु के शहर में।

                            …… ‘अनु-प्रिया’

Poem on City in Hindi
मेरा शहर कविता
शहर पर कविता | गांव और शहर में अंतर पर कविता-मेरे शहर में Shayari Metro
Mere Shahar Me
itna sab seelband hai mere shahar me
ki bachapan tak najaraband hai mere shahar me
amma ke chuulhe se ab uṭhata nahiin dhua
angiṭhi tak napasand hai mere shahar me
jharane,taalaab,nadiyaan uphanatii hai gaanv me
bikataa pani botalaband hai mere shahar me
baaṭi-chokha,daal-chuurama sab biti baaten
pijja burgar hi dil pasand hai mere shahar me
bhul piipal,niim tale maaṭii khelaa bachapan
ṭv mobile me basata anand hai mere shahar me
kala kaga,mor,papiiha,juganu sab chhuṭe
chidiya tak nahin svachchhand hai mere shahar me
gullak,chakiyaa,guḍḍaa-gudiyaa melaa se laanaa
charakhii ḍor patang tak band hai mere shahar me
til- laaii laḍḍuu kii bhiinii khushabuu ke aage
bhaav chadhataa kalaakand hai mere shahar me
imli,bel,ganne,rasiile aam ke chuski
milata bhii nahiin gulakand hai mere shahar me
damaghonṭuu aabohavaa men kaise ho gujar basar
per har koi khvaahishmand hai mere shahar me
chamakate-damakate log,banaavaṭii baaten
bas matalab ke hii sambandh hai mere shahar me
restaurant ,park, club me mouj ḍhunḍhate log
sachchi khushiyon per bhi paband hai, anu ke shahar me
                            …… ‘anu-priya


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